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तू सुना मुझे वह गीत
सुनाया करती थी जिसे बूढ़ी माँ!
मृत आशाओं पर दुखी हुए बिना
मैं भी दूँगा तेरा साथ।
जानता हूँ, परिचित हूँ
इसीलिए तो उद्विग्न हूँ और चिंतित भी
मुझे जैसे अपने ही घर में
सुनाई दे रहा है अपनी आवाज में कंपन।
गा तू, तेरी तरह मैं भी
इस तरह के गीत के साथ जैसे तू।
बस जरा-सी ढँक दूँगा आँखें
कि दिखने लगेगा पुन: प्रिय वह रूप।
गा तू! आखिर वह सौभाग्य है मेरा
कि यह सिर्फ मैं ही नहीं जिसे प्यार था
पतझर के उद्यान के फाटक
और रबीनिया की गिरी पत्तियों से।
गा तू, आ जायेंगी मुझे वे चीजें याद,
नहीं बैठूँगा मैं जैसे बिसरा हुआ सब कुछ।
अच्छा लगता है मुझे और इतना सहज -
देखना माँ को और उसे याद करते हुए मुर्गों को,
हमेशा के लिए प्रेम हो गया है मुझे
कुहरे और ओस के घिरे भुर्ज वृक्षों के नीचे
उनकी सुनहरी चोटियों
और सूती वस्त्र-जैसी छाल से।
इसलिए अब चीजें बुरी नहीं लगती हृदय को
गीत और मदिरा भरे प्यालों के पीछे
मुझे दिखाई दी तू उस भुर्ज वृक्ष की तरह
जो खड़ा है आत्मीय खिड़की के नीचे।
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